Monday, August 19, 2013

मीना कुमारी / गुलज़ार

उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ ,मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले



शहतूत की डाल पर बैठी मीना
बुनती रेशम के धागे
लम्हा लम्हा खोल रही है
पत्ता पत्ता बीन रही है
एक एक साँस बजा कर सुनती है सोदायन
अपने तन पर लिपटती जाती है
अपने ही धागों की कैदी
रेशम की यह कैदी शायद एक दिन अपन ही धागों में घुट कर मर जायेगी !(गुलजार )

इसको सुन कर मीना जी का दर्द आंखो से छलक उठा उनकी गहरी हँसी ने उनकी हकीकत बयान कर दी  और कहा जानते हो न वह धागे क्या हैं ? उन्हें  प्यार कहते हैं मुझे तो प्यार से प्यार है ..प्यार के एहसास से प्यार है ..प्यार के नाम से प्यार है इतना प्यार कोई अपने तन पर लिपटा सके तो और क्या चाहिए...

मीनाकुमारी ने जीते जी अपनी डायरी के बिखरे पन्ने प्रसिद्ध लेखक गीतकार गुलजार जी को सौंप  दिए थे ।  सिर्फ़ इसी आशा से कि सारी फिल्मी दुनिया में वही एक ऐसा शख्स है ,जिसने मन में प्यार और लेखन के प्रति   आदर भाव थे ।मीना जी को यह पूरा  विश्वास था कि गुलजार  ही सिर्फ़ ऐसे  इन्सान है जो उनके लिखे से बेहद  प्यार करते हैं ...उनके लिखे को समझते हैं सो वही उनकी डायरी के सही हकदार हैं जो उनके जाने के बाद भी उनके लिखे को जिंदा रखेंगे और उनका विश्वास झूठा नही निकला |गुलजार जी ने मीना जी की भावनाओं की पूरी इज्जत की उन्होंने उनकी नज्म ,गजल ,कविता और शेर को एक किताब का रूप दिया |
मीना जी की आदत थी रोज़ हर वक्त जब भी खाली होती डायरी लिखने की ..वह छोटी छोटी सी पाकेट डायरी अपने पर्स में रखती थी ,गुलजार जी ने एक बार पूछा उनसे कि यह हर वक्त क्या लिखती रहती हो,तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं कोई अपनी आत्मकथा तो लिख नही रही हूँ बसकह देती हूँ बाद में सोच के लिखा तो उस में बनावट  आ जायेगी जो जैसा महसूस किया है उसको उसी वक्त लिखना अधिक अच्छा लगता  है  मुझे ...और वही डायरियाँ नज़मे ,गजले वह विरासत में अपनी वसीयत में गुलजार जी  को दे गई जिस में से उनकी  गजले किताब के रूप में आ चुकी हैऔर अभी डायरी आना बाकी है |
गुलजार जी कहते हैं पता नही उसने मुझे ही क्यों चुना इस के लिए वह कहती थी कि  जो सेल्फ एक्सप्रेशन अभिव्यक्ति  हर लिखने  वाला राइटर शायर या कोई कलाकार   तलाश करता है वह तलाश उन्हें  भी थी शायद वह कहती थी कि जो में यह सब एक्टिंग करती हूँ वह ख्याल किसी और का है स्क्रिप्ट किसी और की  और डायरेक्शन  किसी और कहा  कि इस में मेरा अपना जन्म हुआ कुछ भी  नही मेरा जन्म वही है जो इन डायरी में लिखा  हुआ है ...मीना जी का विश्वास गुलजार पर सही था ..

क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ
जुनूँ ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूँ
ख़ुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आँखें झाँकती हैं
अभी मेरे इंतज़ार में वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ.......(.गुलजार )