Wednesday, August 16, 2017

चलो दिलदार चलो / कैफ़ भोपाली

चलो दिलदार चलो 
चांद के पार चलो
हम हैं तैयार चलो...'


पाकीज़ा फ़िल्म के इस मशहूर गीत को क़लमबंद करने वाले शायर और गीतकार कैफ़ भोपाली को मुशायरों की रौनक़ कहा जाता था, वह आम चलन से हटकर शेर कहते थे। जिस मुशायरे में कैफ़ पहुंचे मानो वह मुशायरा कामयाब हो गया। 1917 को मध्यप्रदेश के भोपाल में जन्मे कैफ़ भोपाली सादा दिल और अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जीने वाले शायर थे।

वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'चेहरे' किताब में निदा फ़ाज़ली कैफ़ भोपाली के बारे में लिखते हैं, "मैं अमरावती के निकट बदनेरा स्टेशन पर मुंबई की गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था। गाड़ी लेट थी। मैं समय गुज़ारने के लिए स्टेशन से बाहर आया। एक जानी-पहचानी मुतरन्निम आवाज़ ख़ामोशी में गूंज रही थी। यह आवाज़ मुझे कुलियों, फ़क़ीरों और तांगे वालों के उस जमघट की तरफ़ ले गयी जो सर्दी में एक अलाव जलाये बैठे थे और उनके बीच में 'कैफ़ भोपाली' झूम-झूम कर उन्हें ग़ज़लें सुना रहे थे और अपनी बोतल से उनकी आवभगत भी फरमा रहे थे। श्रोता हर शेर पर शोर मचा रहे थे। 

कैफ़ को दुनिया से बहुत ऐशो आराम की ख़्वाहिश नहीं थी, लेकिन शराब उनके शौक में पहले पायदान पर थी। निदा फ़ाज़ली लिखते हैं, 'प्रत्येक शहर के रास्ते मकान और छोटे-बड़े शहरी उन्हें अपनी बस्ती का समझते थे। वे मुशायरों के लोकप्रिय शायर थे। जहां जाते थे, पारिश्रमिक का अंतिम पैसा ख़र्च होने तक वे वहीं घूमते-फिरते दिखाई देते थे। एक मुशायरे से दूसरे मुशायरे के बीच का समय वे इसी तरह गुज़ारते थे। उनकी अपनी कमाई शराब एवं शहर के ज़रूरतमंदों के लिए होती थी। अन्य ख़र्चों की पूरी ज़िम्मेदारी उसी मेज़बान की होती थी, जो मुशायरे का संयोजक होने के साथ उनका प्रशंसक भी होता था। 

विशिष्ट तरन्नुम में शेर सुनाते थे। शेर सुनाते समय, आवाज़ के साथ पूरे जिस्म को प्रस्तुति में शामिल करते थे। जिस मुशायरे में आते थे, बार-बार सुने जाते थे। हर मुशायरे में उनकी पहचान खादी का वह सफेद कुर्ता-पायजामा होता था जो विशेष तौर से उसी मुशयारे के लिए किसी स्थानीय खादी भंडार से ख़रीदा जाता था।"

कमाल अमरोही ने जब कैफ़ को एक मुशायरे में सुना, तो वो उनसे इतना प्रभावित हुए कि उन्हें फ़िल्मों में गीत लिखने का मशविर दिया। कैफ़ ने मशविरे पर अमल करते हुए अपना फ़िल्म गीत लिखने का सफ़र कमाल अमरोही के साथ शुरू किया। हालांकि, उनका यह सफ़र सिर्फ कमाल अमरोही तक सिमटा रहा। फाज़ली लिखते हैं, 'कमाल अमरोही ने भी अमरोहा के एक मुशायरे में सुनकर ही उन्हें फ़िल्म गीत लिखने का निमंत्रण दिया था। उनके गीतों की पहली फ़िल्म 'दायरा' थी। इसमें संगीतकार जमाल सेन की तर्ज में उनका लिखा हुआ गीत-

'देवता तुम हो मेरा सहारा 
मैंने थामा है दामन तुम्हारा' 


अपने ज़माने में बहुत लोकप्रिय हुआ था। इस फ़िल्म के बाद वे कमाल अमरोही के पसंदीदा शायर बन गये थे। वे जब भी कोई नयी फ़िल्म शुरू करते थे, उसमें एक या दो गीत उनसे ज़रूर लिखवाये जाते थे। कैफ़ साहब का कोई एक पता नहीं था। वे जब तक जिस शहर में होते थे वहीं का कोई घर या होटल उनका पोस्टल एड्रेस होता था। इस मुश्किल को आसान करने के लिए कमाल अमरोही ने अपने स्टाफ में एक आदमी को निर्धारित कर दिया था। उसका काम कैफ़ के बदलते पते हुए ठिकानों का पता लगाना था। 

फ़िल्म के शुरू होते ही वे लम्बे चौड़े-मुल्क में जहां होते थे, वहीं से बुलवाये जाते थे। कमालिस्तान के एक कमरे में ठहराये जाते थे, नहलाये जाते थे, नये लिबास उनके लिये सिलवाये जाते थे। एक दो-सेवक उनकी निगरानी पर लगाये जाते थे। नज़दीक की एक-दो दुकानों में उनकी शराब के खाते खुलवाये जाते थे। इस प्रयोजन के साथ उनसे गीत लिखवाये जाते थे। 

फाज़ली लिखते हैं, "कैफ़ की आवभगत का यह क्रम गीतों के पूर्ण होने तक लगातार जारी रहता था। जब गीत रिकॉर्ड हो जाते थे तो फिर वे पारिश्रमिक के साथ जहां जाना चाहते थे विदा कर दिये जाते थे। कमाल साहब की यह वज़ेदारी उनकी अंतिम फ़िल्म 'रज़िया सुल्तान' तक जारी रही। कैफ़ साहिब ने कमाल साहिब की फ़िल्मों में कई सफल गीत लिखे थे। इनमें वे गीत भी शामिल थे जो फ़िल्म में कमाल अमरोही के नाम से शामिल होते थे। फ़िल्म 'शंकर हुसैन' में उनका गीत - 

'इंतज़ार की शब में चिलमने सरकती हैं
चौंकते हैं दरवाज़े, सीढ़ियां धड़कती हैं'


फ़िल्म 'पाकीज़ा' में 'चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो' जैसे गीतों की लोकप्रियता ने फ़िल्म इंडस्ट्री में उनके लिए नयी राहें बनाई थीं। उन्हें कई प्रस्ताव भी मिले लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किये और करते भी कैसे कमाल साहिब जैसी उर्दू तहज़ीब उन्हें दूसरों के यहां नहीं मिली। वे गीत से अधिक प्रीत के रसिया थे।' 

मुशायरों की रूह कहे जाने वाले कैफ भोपाली ने 1991 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी ज़िंदगी पर उनका ही एक शेर मौज़ूं लगता है-

'अज़ां होने को है जामो-सुराही से चिराग़ां कर
कि वक़्ते-शाम, वक़्ते शाम, वक़्ते शाम है साकी'

Wednesday, February 15, 2017

खीर - सिर्फ 6 मिनट की ये फिल्म आपका दिन बना देगी


इंसान की कुछ बेसिक आदतों में से एक है नामकरण. हम हर चीज, हर इंसान, हर रिश्ते को किसी नाम से बुलाना-पहचानना चाहते हैं. हम ऐसा करते भी हैं. जब तक मामला किसी चीज या इंसान का होता है, तब तक तो ठीक है, लेकिन रिश्ते का मसला थोड़ा पेचीदा हो जाता है. हम हर रिश्ते को एक पहचान, एक नाम देते हैं. वेलेंटाइन डे कैसे मनाना चाहिए और किसके साथ मनाना चाहिए, ये छिछली बहस इन दिनों आम है. लेकिन इससे पहले बात तो इस पर होनी चाहिए कि हर रिश्ते को नाम दिया ही क्यों जाए.
इसी पर बात करने वाली एक शॉर्ट फिल्म आई है, ‘खीर’. टेरिबली टिनी टॉकीज नाम के यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड की गई 6 मिनट की इस शॉर्ट फिल्म में सिर्फ चार किरदार हैं. अनुपम खेर, नताशा रस्तोगी, अभिमन्यु चावला और स्तुति दीक्षित. ये चारों किरदार दो जोड़ों में हैं. एक उम्रदराज जोड़ा, जो एक नाजुक पड़ाव पर एक-दूसरे का साथ दे रहा है और दूसरी तरफ दो छोटे भाई-बहन, जो अभी रिश्तों को किसी नाम से परखना सीख रहे हैं. ये उन्होंने कहीं सीखा होगा शायद.
इस फिल्म में भी यही द्वंद है, जो हमारी जिंदगियों में हर रोज चलता है. वो द्वंद हमें कहां ले जाता है, पता नहीं, लेकिन 6 मिनट की ये फिल्म हमें मैच्योरिटी के एक अगले स्तर पर ले जाती है. रिश्तों को नाम देना बुरा नहीं है, लेकिन रिश्तों के लिए सीमित शब्दकोश होना जरूर बुरा है.  अनुपम खेर की ये फिल्म आपका  दिन बना देगी.  फिल्म देखिए:


Thursday, February 2, 2017

ड्यूल कैमरा स्मार्टफोन्स


आजकल स्मार्टफोन्स में इतने अच्छे कैमरे आने लगे हैं कि उन्होंने पॉइंट-ऐंड-शूट कैमरों को लगभग रिप्लेस कर दिया। स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों के सामने चुनौती यह होती है कि वजन और मोटाई कम रखते हुए कैसे कैमरों को बेहतर बनाया जाए। इस समस्या को दूर करने के लिए अब एक ही डिवाइस में ज्यादा कैमरे लगाए जा रहे हैं। जानें, क्या है यह ड्यूल कैमरा टेक्नोलॉजी और क्या हैं इसके फायदे:
ड्यूल कैमरा सेटअप आखिर है क्या?

स्मार्टफोन की बैक साइड में एक छोटा सा कैमरा लेंस दिया गया होता है। स्मार्टफोन्स में कैमरा मॉड्यूल काफी छोटा होता है, क्योंकि फोन खुद भी पतला होता है। इस छोटे से मॉड्यूल के अंदर ही लेंस के कई एलिमेंट्स को डालना होता है। इनमें इमेज सेंसर और ऑप्टिकल इमेज स्टेबलाइजेशन के लिए छोटी मोटर्स भी होती हैं।

ड्यूल कैमरा सेटअप में आपको दो लेंस नजर आएंगे, जिन्हें एकसाथ दाएं-बाएं या ऊपर-नीचे लगाया गया होता है। इसका मतलब है कि डिवाइस में दो कंप्लीट और इंडिपेंडेंट कैमरा मॉड्यूल लगे हैं। इनमें से एक प्राइमरी लेंस होता है, जो मुख्य काम करता है। दूसरा सेकंडरी लेंस अडिशनल लाइट, डेप्थ ऑफ फील्ड और बैकग्राउंड ब्लर जैसे इफेक्ट्स कैप्चर करता है।

2011 में आया था ड्यूल कैमरे वाला पहला स्मार्टफोन

ड्यूल कैमरा स्मार्टफोन सबसे पहले साल 2011 में देखने को मिला था। HTC Evo 3D स्मार्टफोन में ड्यूल कैमरा सेटअप इस्तेमाल किया गया था ताकि 3D तस्वीरें ली जा सकें। इन्हें स्मार्टफोन की 3D स्क्रीन पर देखा जा सकता था। इसके बाद इस टेक्नॉलजी के साथ एक्सपेरिमेंट किए जाते रहे, मगर आइडिया कामयाब नहीं हुआ। साल 2014 में HTC One M8 में ड्यूल कैमरा सेटअप लगा हुआ था। यह काफी शानदार डेप्थ ऑफ फील्ड इफेक्ट कैप्चर करता था।

2016 में ड्यूल कैमरों ने स्मार्टफोन्स में जगह की दिक्कत को दूर करते हुए शानदार रिजल्ट देना शुरू कर दिया।


ड्यूल कैमरा सिस्टम का फायदा क्या है?

ड्यूल कैमरा सेटअप में सेकंडरी कैमरे को कैसे इस्तेमाल किया गया है, तस्वीरों में उसका रिजल्ट वैसे ही दिखता है। ड्यूल कैमरा सेटअप से तस्वीरें ज्यादा शार्प आती हैं और ज्यादा डीटेल्स कैप्चर होती हैं। साथ ही डेप्थ ऑफ फील्ड को कैप्चर करके सब्जेक्ट को अलग से हाइलाइट किया जा सकता है।

कई बार ड्यूल कैमरा सेटअप आपको 1x और 2x ऑप्टिकल जूम ऐड करने में भी मदद करता है। अभी ऐपल आईफोन 7 प्लस और आसुस जेनफोन 3 जूम में हम ऐसा देख सकते हैं।

कई बातों पर निर्भर करती है पिक्चर क्वॉलिटी

भले ही ड्यूल-कैमरा सेटअप से रिजल्ट अच्छे आते हैं, मगर सेंसर साइज, पिक्सल साइज, अपर्चर और पोस्ट प्रोसेसिंग का भी अच्छी तस्वीरें खींचने में अहम भूमिका निभाते हैं।

सैमसंग गैलक्सी S7/S7 Edge, गूगल पिक्सल, वनप्लस 3, LG G5 और HTC 10 कम लाइट में बहुत से ड्यूल कैमरा स्मार्टफोन्स के मुकाबले अच्छी तस्वीरें लेते हैं। इनके लेवल की अच्छी तस्वीरें खींचने वाले ड्यूल कैमरा सेटअप वाले स्मार्टफोन्स हैं- iPhone 7 Plus और Vave P9.

Vibe S1 था ड्यूल फ्रंट कैमरे वाला पहला स्मार्टफोन

साल 2015 में लेनोवो ने ड्यूल फ्रंट कैमरे वाला स्मार्टफोन Vibe S1 लॉन्च किया था। इसमें एक 8 मेगापिक्सल फ्रंट कैमरा और दूसरा 2 मेगापिक्सल फ्रंट कैमरा था। वीवो ने भी हाल ही में ड्यूल फ्रंट कैमरे वाला स्मार्टफोन Vivo V5 Plus लॉन्च किया है। इसमें एक कैमरा 20 मेगापिक्सल और दूसरा 8 मेगापिक्सल है।




अब महंगे नहीं रहे ड्यूल कैमरे वाले स्मार्टफोन

भारत में पिछले साल वावे P9, LG G5, iPhone 7 Plus जैसे ड्यूल बैक कैमरे वाले स्मार्टफोन आए। ये सभी प्रीमियम स्मार्टफोन हैं और इनकी कीमत 35000 रुपये से ज्यादा रही। अब यह टेक्नॉलजी एंट्री लेवल स्मार्टफोन्स में भी नजर आने लगी है, जैसे कि जोलो ब्लैक। 2016 के आखिर में ऑनर 8 स्मार्टफोन 30,000 रुपये से कम दाम पर लॉन्च हुआ। फिर 2017 में कूल 1 ड्यूल और ऑनर 6x जैसे स्मार्टफोन्स मिड रेंज में लॉन्च हुए।
2017 में आएंगे ड्यूल कैमरे वाले स्मार्टफोन्स

पहला ड्यूल-कैमरे वाला स्मार्टफोन 2011 में आया था, मगर इस टेक्नॉलजी के आगे बढ़ने में वक्त लग गया। अब 2017 में ड्यूल कैमरा सेटअप वाले बहुत से फोन लॉन्च होने की उम्मीद है। इससे न सिर्फ इमेज क्वॉलिटी इंप्रूव होगी, तस्वीरों में एडिशनल इफेक्ट्स भी डाले जा सकेंगे।