Tuesday, May 1, 2012

आवारा का स्वप्न दृश्य

चार खंडोँ वाली क्‍लासिकल सिंफ़नी की तरह संगीतबद्ध यह दृश्‍य एक ओर निर्देशक राज कपूर की दृश्‍य-नाट्य परिकल्‍पना शक्ति का परिचायक है, तो दूसरी ओर संगीतकार शंकर जयकिशन की रचनाशीलता का सबूत और गीतकार शैलेँद्र की काव्‍य क्षमता का. नायक राजू अपने जीवित नरक से निकलने को छटपटा रहा है. उसे ज़िंदगी चाहिए, बहार चाहिए… ऊपर धुंध और बादलोँ के पार स्‍वर्ग है जहाँ है उस की चाहत की राजकुमारी… राजू की सफलता का स्‍वागत वह करती है लता मंगेशकर के गाए घर आया मेरा परदेसी गीत से… 
 फिल्म 'आवारा' का स्वप्न-दृश्य अपने आप में इतिहास है। सूक्ष्मताओं तथा संवेदनशीलताओं से भरा ऐसा दृश्य किसी फिल्म में दोबारा नहीं आया। 'आवारा' सन्‌ 1951 की फिल्म है। मगर 61 से अधिक साल के बाद भी इसके गीते मोहते हैं और सदियों के गुमनाम अतीत की धुंधली याद जगाते हैं।


'आवारा', 'बरसात' और 'श्री चार सौ बीस' स्पष्ट होते हुए भी एक तरह से फेंटेसियां हैं, जहां आप यथार्थ की कड़ी भूमि पर होते हुए भी स्वप्नलोक के कोहरे में होते हैं। ऐसा लगता है, राज कपूर और भी बहुत कुछ कह रहे हैं, जिसे समझा जाना चाहिए। वे अपनी फिल्मों के आंशिक खलील जिब्रान थे।


'आवारा' में पहले स्वप्न-दृश्य नहीं था। उसे बाद में शूट किया गया। युवा राजकपूर एक तरफ बॉक्स ऑफिस की सफलता के लिए चाक्षुष सौंदर्य बढ़ाना चाहते थे और दूसरी तरफ मन की गहरी आस्था व्यक्त करना चाहते थे। इस दृश्य पर उन्होंने बेशुमार खर्च किया- यहां तक कि कृष्णा कपूर के गहने तक गिरवी रख दिए थे। 'आवारा' के स्वप्न-दृश्य को आज भी तकनीक दृष्टि से भव्य, स्तरीय और संपूर्ण माना जाता है। इस टक्कर का- सूक्ष्मताओं और संवेदनशीलता से भरा हुआ- सेल्युलॉइड काव्य अभी भी नजर में नहीं है।


'आवारा' में पूरा जोर व्यक्ति के सुधार पर है। अपराधी को सुधारने में नारी के प्रेम पर है। प्रच्छन्न संदेश यह भी है कि अपराधी अगर मुसीबत का मारा हुआ है, तो वह स्वयं भी दुर्भाव और कुकर्म के नरक से जल्दी बाहर आना चाहता है। 'आवारा' के इस गाने में जो आम सिने दर्शक को मात्र एक गाने से ज्यादा नहीं लगता, राजकपूर की पूरी विचारधारा कैद है।


गौर कीजिए, पहले नरगिस का हिस्सा आता है- 'तेरे बिना आग ये चांदनी।' मगर इस प्रेम के लिए अपने को नकारते हुए आवारा नायक कहता है- 'अभी नहीं। मुझे प्रेम के लायक बनने दो। 'ये नहीं है, ये नहीं है जिंदगी' कि मैं विकृतियों के नरक में जीता रहूं। मुझे अपनी आत्मा में उठने दो। मुझे प्रीत, फूल और बहार चाहिए।' गौर कीजिए, इसके बाद कोरस में 'ओम नमः शिवाय' आता है और फिर आती है, लता की सदाबहार मेलोडी- 'घर आया मेरा परदेसी', जिसका अर्थ यह है कि प्रेम ने आपराधिकता पर विजय पाई और खुद खुशी से नाच उठा!
 

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