'कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की ' ये गीत सन 1977 में बनी फिल्म ‘शंकर हुसैन’ का है जिसे कमाल अमरोही ने बनाया था । ये गीत क्या है, ख़ालिस शायरी है । इस गाने का शुमार मो. रफी के बहुत मद्धम गानों में किया जाता है । संगीतकार ख़ैयाम ने बहुत कम साज़ों का इस्तेमाल करके इस गाने की धुन तैयार की है, जिससे इस नाज़ुक गाने के जज़्बात बहुत असरदार तरीक़े से उभरे हैं । इस तरह के गाने साबित कर देते हैं कि साज़ों का शोर गीत की किस तरह जान लेता है और अगर समझदारी से संगीत-संयोजन किया जाये तो कैसे कोई गीत महान बन जाता है ।
कहने वाले ये कहते हैं कि गीतकार जावेद अख़्तर ने इसी गाने से प्रेरित होकर ‘1942 ए लवस्टोरी’ का गीत ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ लिखा था । अगर आप ग़ौर करें तो पाएंगे कि दोनों गीतों की बुनावट एक जैसी है । पर अपने ख्यालों और मिसालों में कमाल अमरोही वाक़ई कमाल है ।
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर
वो दांतों में उंगली दबाती तो होगी ।।
इस तरह के नाज़ुक मिसरे लिखना किसी आम शायर के बस की बात नहीं है । कमाल अमरोही तो वो शायर थे जो सेल्युलॉइड पर भी कविता रचते थे । और इसकी मिसाल हैं ‘महल’, ‘पाकीज़ा’ और ‘रजिया सुल्तान’ जैसी फिल्में । पढिये ये गीत--
कहीं एक मासूम नाज़ुक-सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली-सी
मुझे अपने ख्वाबों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा कसमसा कर
सरहाने से ताकिये गिराती तो होगी ।।
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की ।।
वही ख्वाब दिन के मुंडेरों पे आके
उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे
कई साज़ सीने की ख़ामोशियों में
मेरी याद से झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख़्ता धीमे धीमे सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी ।।
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की ।।
चलो खत लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियां कंपकंपाती तो होंगी
क़लम हाथ से छूट जाता तो होगा
उमंगें क़लम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर
वो दांतों में उंगली दबाती तो होगी ।।
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की ।।
ज़ुबां से अगर उफ निकलती तो होगी
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पांव पड़ते तो होंगे
दुपट्टा ज़मीं पर लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की ।।
सुनिए ये गीत--
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