Wednesday, April 24, 2013

माई री मैं कासे कहूँ.../ मदन मोहन

अगर संगीतकार मदन मोहन के स्वरबद्ध फिल्मों पर गौर किया जाए तो हम पाएँगे की कुछ फिल्मों को छोड्कर इनमें से अधिकतर फिल्में 'बॉक्स ऑफिस ' पर उतनी कामयाब नहीं रही. लेकिन जहाँ तक इन फिल्मों के संगीत का सवाल है, तो हर एक फिल्म में मदन मोहन का संगीत कामयाब रहा, जिन्हे भूरि  भूरि प्रशंसा मिली. सच तो यह है कि मदन मोहन के संगीत में ऐसे कुछ कम चलनेवाले फिल्मों के कई गीत आज कालजयी बन गये हैं.

1970 में एक फिल्म आई थी "दस्तक", जिसका निर्देशन किया था राजिंदर सिंह बेदी ने. संजीव कुमार और रेहाना  सुल्तान अभिनीत यह फिल्म 'बॉक्स ऑफिस' पर बुरी तरह से 'फ्लॉप' रही. लेकिन इस फिल्म के संगीत के लिए मदन मोहन को मिला भारत सरकार की ओर से उस साल के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार. यहाँ यह याद रखना ज़रूरी है कि  राष्ट्रीय पुरस्कार सभी भाषाओं के फिल्मों को ध्यान में रखकर दिया जाता है. इसका यह अर्थ हुआ कि मदन मोहन केवल 'बोलीवुड' के संगीतकारों में ही नहीं बल्कि देश भर के सभी भाषाओं के संगीतकारों में श्रेष्ठ साबित हुए. बहरहाल हम वापस आते हैं फिल्म दस्तक के संगीत पर. इस फिल्म के गाने बहुत ही ऊँचे स्तर के हैं जिनमें 'मास-अपील' से ज़्यादा 'क्लास-अपील' की झलक है. यह गाने आम जनता में बहुत ज़्यादा चर्चित ना रहे हों, लेकिन संगीत के सुधि श्रोताओं को इन गीतों की अहमियत का पूरा पूरा अहसास है. मजरूह सुल्तानपुरी ने इस फिल्म में गीत लिखे और लता मंगेशकर की पूर-असर आवाज़ ने इन गीतों को मधुरता की चोटी पर पहुँचा दिया. चाहे वो "हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह" हो या फिर शास्त्रीयता का रंग लिए हुए "बैयाँ ना धरो ओ बलमा", हर एक गीत अपने आप में एक 'मास्टरपीस' है. लता मंगेशकर का ही गाया एक और गीत है "माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की", जिसे सुनकर मानो मन एक अजीब दर्द से भर उठ्ता है. लेकिन जो आवाज़ आप इस गीत में सुनेंगे, वो लता मंगेशकर की नहीं बल्कि खुद मदन मोहन की होगी. जी हाँ, इस गीत को मदन मोहन साहब ने भी गाया था, और क्या खूब गाया था. सुनिए यह गीत और महसूस कीजिए दर्द में डूबे किसी दिल की पुकार! 



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