"नीले गगन के तले धरती का प्यार पले" - कैसे न बनती साहिर और रवि की सुरीली जोड़ी जब दोनों की राशी एक है!!


"नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले, ऐसे ही जग में, आती हैं सुबहें, ऐसे ही शाम ढले", यह न केवल साहिर और रवि की जोड़ी का मील का पत्थर सिद्ध करने वाला गीत रहा, बल्कि इसके गायक महेन्द्र कपूर को भी इस गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था और फ़िल्म 'हमराज़' के गानें शायद महेन्द्र कपूर के करीयर के सबसे महत्वपूर्ण गीत साबित हुए। चोपड़ा कैम्प में शुरु शुरु में रफ़ी साहब ही गाया करते थे। महेन्द्र कपूर के मैदान में उतरने के बाद कुछ गीत उनसे भी गवाए जाने लगे। कहा जाता है कि १९६१ की फ़िल्म 'धर्मपुत्र' के एक क़व्वाली को लेकर रफ़ी साहब से हुए मनमुटाव के बाद बी. आर. चोपड़ा ने आने वाली सभी फ़िल्मों के लिए बतौर गायक महेन्द्र कपूर का चयन कर लिया। रफ़ी साहब की जगह महेन्द्र कपूर को लेकर न बी. आर. चोपड़ा पछताए और महेन्द्र कपूर को भी कुछ लाजवाब गीत गाने को मिले जो अन्यथा रफ़ी साहब की झोली में चले गए होते।
फ़िल्म 'हमराज़' के इस गीत की खासियत यह है कि यह गीत अन्य गीतों की तरह मुखड़ा-अंतरा-मुखड़ा शैली में नहीं रचा गया है। हर अंतरा भी एक मुखड़ा जैसा ही लगता है।
नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले,
ऐसे ही जग में, आती हैं सुबहें, ऐसे ही शाम ढले।
शबनम के मोती, फूलों पे बिखरे, दोनों की आस फले,
नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले।
बलखाती बेलें, मस्ती में खेलें, पेड़ों से मिलके गले,
नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले।
नदिया का पानी, दरिया से मिलके, सागर की ओर चले,
नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले।
कितनी सादगी, कितनी सुन्दरता, कितनी सच्चाई है इन शब्दों में। बस एक सुरीली धुन, और कुछ सीधे-सच्चे बोल ही कैसे एक गीत को अमरत्व प्रदान कर देती है यह गीत इस बात का प्रमाण है। यह गीत भले धुन पे लिखा गया हो पर सुनने में आता है कि साहिर साहब यह बिल्कुल पसंद नहीं करते थे कि धुन पहले बना ली जाए और बोल बाद में लिखे जाए। रवि साहब से जब इसी बात की पुष्टि करने को कहा गया तो उन्होंने बताया, "यह मुझे पता नहीं पर एक बार फ़िल्म 'हमराज़' में ऐसा एक गाना बना था जिसका सिचुएशन कुछ ऐसा था कि पहाड़ों में गीत गूंज रहा है। तो मैंने उनको एक धुन सुनाया और कहा कि यह पहाड़ी धुन जैसा लगेगा और इसको हम गाने के रूप में डाल सकते हैं फ़िल्म में। अगले दिन वे गीत लिखकर ले आए "नीले गगन के तले धरती का प्यार पले"। इस गीत में कोई अंतरा नहीं है, अंतरे भी मुखड़े जैसा ही है। कमाल का गीत लिखा है उन्होंने। वो ही ऐसा लिख कर लाए थे, किसी ने ऐसा लिखने को नहीं कहा था।" इस तरह से बस एक ही धुन पर पूरा का पूरा गीत बन गया। राज कुमार और विम्मी पर फ़िल्माया यह गीत कालजयी बन गया है सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी सादगी की वजह से। यह गीत आज भी इसी बात की ओर इंगित करता है कि किसी गीत के कालजयी बनने के पीछे न तो साज़ों ले महाकुम्भ की ज़रूरत पड़ती है और न ही भारी-भरकम शायरी की; बस एक सच्ची सोच, एक प्यारी धुन, एक मधुर आवाज़, बस, ये बहुत है एक अच्छे गीत के लिए!
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