Friday, April 6, 2012

मैं ट्रेंड फॉलो नहीं करता, मैं ट्रेंड रचता हूँ : कैलाश खेर

मशहूर गायक कैलाश खेर से फिल्म लेखक/निर्देशक पंकज शुक्ल की यह बातचीत उनके ब्लॉग से ली गयी है. 
कैलाश खेर की गायिकी की दुनिया दीवानी है। उनके गाए अल्लाह के बंदे को संगीतकार ए आर रहमान तक अपना पसंदीदा गीत मानते हैं। उनके कैलासा बैंड ने पिछले आठ साल में दुनिया भर में 800 से ऊपर कंसर्ट किए हैं। वह नौजवानों में एक हौसला, एक विचार, एक संस्कृति पनपती देखना चाहते हैं। एक ऐसी परंपरा जिसमें देश सर्वोपरि हो। लेकिन, खुद कैलाश खेर को कितने लोग जानते हैं? कितने लोग जानते हैं उस बच्चे कैलाश के बारे में जो अपने पिताजी के साथ साइकिल के डंडे पर बैठकर गांव गांव गाने जाया करता था? और कितने जानते होंगे, उस युवा कैलाश के बारे में जिसने कभी ऋषिकेश में कर्मकांड सीखकर अमेरिका में पंडिताई को अपना करियर बनाने का फैसला किया था? 
अपने बेटे कबीर को देखकर आपको बचपन तो खूब याद आता होगा?
कबीर की क्या कहें, मैं तो खुद अभी बचपन में ही हूं। मेरा तो शरीर बढ़ रहा है। मैं वैसा ही हूं भोला बचपन जैसा। बचपन ना हो तो मैं कुम्हला कैसे जाता? मैं तो दाता की कृपा मानता हूं कि मुझे उसने रोका हुआ है। मेरी यही प्रार्थना दिन रात रहती है कि मेरा बचपन न छीन लेना नहीं तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा क्योंकि कि ये दिमाग वालों की दुनिया में दिल वालों का जो खेल है वो बहुत भारी है। इस खेल में सच्चा आदमी टिक नहीं पाता। 
किसी भी कलाकार के लिए जमीन से जुड़े रहना या विनम्र बने रहना कितना जरूरी है?
कलाकार? अरे कलाकार तो कितने हैं यहां। समुद्र है। मेरे तो ईश्वर ने मुझे अकस्मात एक ऐसे क्षेत्र में डाल दिया, जिसके बारे में मैंने कभी सोचा तक नहीं था। उन्होंने जैसे त्रिलोक दिखाए थे पार्वती को, वैसे ही मुझे दिखाया। जब मैं टूट चुका था। जब मैंने दुख से दुखी होना बंद कर दिया था। तब भगवान आए हैं मेरे लिए प्रेरणा पर। और ऋषिकेश से मैं सीधे यहां मुंबई आ गया। मुझे खुद पता नहीं कि मैं यहां क्यूं आया? फिल्मी दुनिया के बारे में एक अक्षर का ज्ञान तक नहीं था मुझे। ये तक ज्ञान नहीं कि आर डी बर्मन जैसे के गाने तो सुपरहिट हैं लेकिन वो हैं कौन से?
                       कैलाश खेर
 अच्छा? तो इसके चलते तो कभी गोटी भी फंसी होगी आपकी?
2006 के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में शंकर महादेवन मुझे अपने साथ ले गए गोवा। वहां किसी चैनल वाले ने शो से पहले सवाल ही कर दिया कि दुनिया आर डी बर्मन की फैन है तो आप को उनका संगीत कैसा लगता है। मैंने कहा कि उनको फैन कौन नहीं है। तो रिपोर्टर ने कहा कि उनका कोई फेवरिट गाना जो आपको पसंद हो। मैं घबरा गया। मैंने कहा कि उनको तो कोई भी गाना आंख बंद करके ले लीजिए सारे ही फेवरिट हैं। तो रिपोर्टर ने कहा कि गाकर सुना दीजिए ना। अब मुझे लगा कि मैं फंस रहा हूं। मैंने देखा कोई आजू बाजू कोई खड़ा हो तो मैं पूछं कान में कि कोई जल्दी गाना बता भाई। फिर एकदम से भगवान याद आए।तो एकदम बुद्धि आई कि वही गाना जो शो में गाना है। शंकर ने बोल रखा था कि जै जै शिवशंकर गाना है। तो मैंने ये गाना गा दिया। किसी तरह बाबा ने बचा लिया। बाद में शान ने मुझसे बोला कि क्या वाकई आप आर डी बर्मन के किसी गाने के बारे में नहीं जानते। मैंने कहा कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो शायद गुफाओं में ही रहे हों जिंदगी की शायद। 
यानी कि आपने कभी किसी को फॉलो नहीं किया?
होता यही है जो पढ़ाकू हैं। जो मेथड को फॉलो करते हैं। नियमों को, फॉर्मूलों को फॉलो करते हैं तो वो बस फॉर्मूले की ही दुनिया तक सीमित रह जाते हैं। नया वही रचेगा जो फॉर्मूलों के पार हो। उसको दाता रचता है। मैं ट्रेंड फॉलो नहीं करता। मैं ट्रेंड रचता हूं। मैं ये अपनी बड़ाई नहीं कर रहा लेकिन मैंने ये अनुभव किया है। साक्षीभाव और दृष्टा भाव से। मैं देख पाता हूं कि मुझे चीजें कभी कभी अपने आप हो जाती हैं। एमटीवी कोक कार्यक्रम के दौरान इसका बाकायदा अनुभव भी हुआ मुझे। 
फिर तो इस रास्ते में तमाम अड़चनें भी आई होंगी?
सबसे पहली बात तो ये कि मैं किसी भी मुसीबत से डरता हूं नहीं। ये एक बहुत खतरनाक चीज हो जाती है जब आप डर से डरना बंद कर देते हैं और दुख से भागना बंद कर दें। तब दाता का सिंहासन डोलता है ऐसा मुझे लगता है। जितने साधकों की हमने कहानियां सुनी है उन सबने जिद करके ही दुनिया बदली है। कामयाबी और शोहरत देने से पहले ईश्वर तमाम मुश्किलें, तमाम अड़चनें खड़ी करता है। हमारे सामने मोह, माया और ना जाने कैसे कैसे जाल बिछाता है? उससे बच गए तो बस..फिर सबकुछ वही आपके लिए करता है।
लेकिन जैसी ये मायानगरी है, वहां तो सच्चे का बोलबाला कम ही हो पाता है?
ऐसा नहीं है। मैं यहां आया और यहां आने के बाद ही ये जीवन शुरू हुआ। तय हुआ कि मैं अलग करूंगा। अपने हिसाब से करूंगा। अपने ही गीत बनाउंगा। शब्दों का चयन भी अपना ही होगा। आमतौर पर जो शब्द किताबों और अखबारों में लिखे जाते हैं, उन्हें मैं नहीं लिखता। मैं भाषा में नहीं लिखता, मैं बोलियों में लिखता हूं। अगर आप आज की युवा दुनिया को ये चीजें उनके ही अंदाज में न पकड़ाएं तो कुछ दिनों बाद ये सब संग्रहालय में चली जाएंगी। जैसे मैंने एक गीत में लिखा चांदण में। तो इस शब्द को लेकर बहुत लोग अपना ज्ञान लगाते हैं। एक टीवी शो में एक बहुत बड़े विद्वान से बात हो गई तो हमने टोका कि नहीं ऐसा नहीं है। 
तो कैलाश के कैलाश खेर बनने की शुरूआत कहां से होती है?
सबसे पहले पिताजी मेहर सिंह खेर एकतारे पर गाते थे। उस एकतारे की जो टोन थी वो हमको बहुतअच्छी लगती थी। वो तुंबे में बजता था। बनाते भी थे खुद। गाते भी थे खुद। कहीं से एक तार का जुगाड़ कर लिया। तुंबा मतलब जो सीताफल का निकलता है। पहले वो सूखा होता है। फिर उसे गीला करते हैं। उनके पास एक था एकतारा और एक था दुतारा। मेरे ताऊजी और पिताजी दोनों गाते थे। सत्संग करते थे। कबीर वाणी, मीरा को गाते थे। गुरुनानक को गाते थे। उनसे पूछो कि क्या गा रहे हो तो वो बता नहीं पाते थे। उन्होंने भी शायद सुना होगा दादा से परदादा से। और वो गांव का एक चलन भी है। मैंने तो देखा है कि पूरी दुनिया की लोक संस्कृति एक ही है। यूरोप जाओ। साउथ अफ्रीका जाओ। जो ये जिप्सी म्यूजिक बोलते हैं। कंट्री म्यूजिक वो सब जगह का एक ही जैसा होता है। मुझे गाने का शौक दो साल की उम्र से लगा। मैं गाने लगा। जब मैं गाता था तो सबसे ज्यादा तालियां मुझे ही मिलती थीं। पिताजी हमको साइकिल के डंडे पर बिठाके, कपड़ा बांध लेते थे, और ले जाते थे। तब सीट लगाने के भी पैसे नहीं थे। अरसे बाद फिर किसी तरह दया खाकर डेढ़ रुपये में पिजाती ने साइकिल के डंडे पर एक सीट लगवाई। हमें तो लगा कि बीएमडब्लू मिल गई। पहला वाद्य जो हमने छुआ तो वो पिताजी की एकतारा ही था। उससे अंगुली भी कट गई थी। वो निशान आज भी है।
दुनिया भर में घूमने के दौरान कोई तो लम्हा होगा जो भूलना चाहो तो भी नहीं भूलता?
हम अमेरिका गए थे गाने के लिए। एक बात बताऊं। अमेरिका में जितने भारतीय है उनमें से 99 फीसदी प्लास्टिक हो चुके है। भारत से या इसकी संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है उनका। वो वहां बैठते हैं, उनकी तारीफों के पुल बांधते हैं और यहां की बुराई करते हैं। तो शो के दौरान एक बुजुर्ग महिला आईं। अटलांटा की बात है। वे पैर छूने लगीं। हम न पैर छूते हैं और न छुआते हैं। हम दिल को छूते हैं। तो वो पैर छूने लगीं और मैं सकपकाकर पीछे हट गया। बाद में जब हम गा रहे थो तो वो स्टेज के पास एक कागज रख गईं। हमें लगा कि कोई रिक्वेस्ट होगी कि अल्ला के बंदे गा दो या रंग दींणी गा दो। लेकिन वो एक पत्र था जिसमें लिखा था, मेरे माता-पिता भारतीय हैं। मैं यहीं पैदा हुई और पली। लेकिन मुझे आपमें ईश्वर दिखता है। भारत दिखता है। सिर्फ आप लोगों के संगीत से ही हम यहां के मनहूस माहौल में हौसला रखते हैं। वो लम्हा मैं कभी नहीं भूल सकता और वो पत्र मेरे जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार है।
इतनी शोहरत, इतनी दौलत और इतना प्यार पाने के बाद भी कोई सपना शेष है?
सच पूछिए तो इस ग्लैमर नगरी में तो मेरा कोई सपना ही नहीं था। यहां आने के बाद भी मेरा कोई उद्देश्य ही नहीं था। मेरे तो उद्देश्य था कि मैं ऋषिकेश में कर्मकांड सीखूंगा आचार्य की डिग्री लेकर अमेरिका चला जाऊंगा। किसी मंदिर में काम करूंगा। मेरे पिताजी ने जो काम किया है वहीं काम मैं थोड़ा अंग्रेजी बोल कर करूंगा। तब तो सर्ववाइल ऑफ द फिटेस्ट वाली मानसिकता में जी रहा था मैं। मेरे सपने बड़े होते तो मैं किसी हीरो को देखता उनको फॉलो करता। हीरोइनों को देखता। मुझे तो यहां के बारे में पता ही नहीं था। चित्रहार और विविध्ा भारती ही संगीत का इकलौता जरिया थे। और फिल्मों के बारे में आम आदमी जितनी जानकारी थी। मुझे तो जो अनुभव लगता है, वो ये कि अगर आपके सपने न हों तो ईश्वर आपके लिए सपने देखने लगता है। इस वक्त 15 करोड़ के घर में बैठे हैं हम। 10 साल भी नहीं हुए मुझे मुंबई आए। तो ये चमत्कार है। ये मेरे दाता कर रहे हैं। जैसे मेरा दो साल का बेटा कबीर मुझसे कुछ मांग नहीं रहा, लेकिन मैं उसके लिए कर रहा हूं। दूसरे लोग कर रहे हैं। तो वैसा ही रिश्ता मेरा मेरे ईश्वर के साथ है। मेरे लिए मेरे सपने मेरा ईश्वर देखता है।
और ऐसा कोई अनुभव जो आप अपने प्रशंसकों के साथ साझा करना चाहें?
ये जो मेरे नए अलबम रंगीले में बाबाजी गाना है, वो ऐसा ही एक अनुभव है। उसका मतलब यही है। जब मेरी पत्नी शीतल गर्भवती थी। छह महीने का गर्भ था उन दिनों और मेरी पत्नी कहा करती कि मुझे इतने ख्वाब आ रहे हैं आप क्यूं नहीं कुछ देख रहे हो। भगवान आपको सपने क्यूं नहीं दिखाते। मेरे मुंह से निकला, मैं सपना नहीं देखते। सपने मुझे देखते हैं। बस मुझे विचार मिला। रात के दो बजे मैं अपने रियाज के कमरे में भागा और रात के तीन बजे ये गाना तैयार किया, 
मैं एक अचंभा गाऊं, 
मैं मन के ठाठ सुनाऊं, 
जब कभी कभी । 
ओ मेरे बाबाजी, 
निहारें असमान से..

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