Thursday, April 19, 2012

नसीरूद्दीन शाह:अभिनय की चलती-फिरती पाठशाला



 नसीरूद्दीन शाह इस नाम का जिक्र होते ही एक ऐसे साधारण पर आकर्षक व्यक्तित्व की छवि सामने आती है जिसकी अभिनय-प्रतिभा अतुलनीय है, जिसके चेहरे का तेज असाधारण है और हिन्दी सिनेमा में जिसके योगदान को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।
नसीरूद्दीन  शाह हिन्दी सिनेमा जगत  की कालजयी  शख्सियतों  की सूची में शुमार हैं। वे अभिनय की चलती-फिरती पाठशाला हैं। कई स्थापित अभिनेताओं  के वे प्रेरणास्रोत  रहे हैं तो कई नवोदित अभिनेता उनकी अभिनय-कला से प्रेरित होकर हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जमीन तलाश रहे हैं। पद्म भूषण और पद्म श्री से सम्मानित हो चुके नसीरूद्दीन  शाह की किसी फिल्म में उपस्थिति मात्र ही उस फिल्म की गुणात्मकता का संकेत देती है।
सैन्य पारिवारिक पृष्ठभूमि में बचपन गुजारने के बाद नसीरूद्दीन  शाह ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। और फिर उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का रूख  किया। अभिनय के इस प्रतिष्ठित संस्थान से अभिनय का विधिवत प्रशिक्षण लेने के बाद वे रंगमंच  और हिन्दी फिल्मों में सक्रिय हो गएं। नसीरूद्दीन  शाह की फिल्मों की सूची में समानांतर और मुख्य धारा की फिल्मों का अनूठा सम्मिलन  देखने को मिलता है। उनके फिल्मी सफर का प्रारंभ निशांत,मंथन और भूमिका जैसी समानांतर फिल्मों से हुआ। उन्होंने अपने फिल्मी सफर के शुरूआती लम्हों में ही परिपक्व अभिनय का परिचय दिया और देखते-ही-देखते वे तात्कालिक सिनेमा जगत  के सर्वाधिक प्रतिभाशाली अभिनेताओं  में शुमार हो गए। धीरे-धीरे वे समानांतर फिल्मों की जरूरत बन गए। उनकी अनुपस्थिति में समानांतर फिल्मों की कल्पना करना भी मुश्किल हो गया। भवनी भवाई,स्पर्श,अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है?,मासूम,अ‌र्द्धसत्य,मंडी,पेस्टॅनजी में नसीरूद्दीन  शाह ने अभिनय की नयी परिभाषा गढ़ी। कला-फिल्मों के साथ-साथ उन्होंने मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख  करना प्रारंभ किया। शुरूआत हुई हम पांच से। हम पांच के बाद उन्होंने दिलीप कुमार अभिनीत कर्मा में अभिनय का रंग भरा। धीरे-धीरे वे मुख्य धारा की फिल्मों में एकल नायक की भूमिका निभाने लगें। ऐसी फिल्मों में इजाजत,जलवा,हीरो हीरालाल उल्लेखनीय है।
नसीरूद्दीन  शाह के फिल्मी सफर में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने मसाला हिन्दी फिल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कोई हिचक नहीं दिखायी। ऐसी फिल्मों में गुलामी,त्रिदेव,विश्वात्मा और मोहरा उल्लेखनीय हैं। वक्त के साथ नसीरूद्दीन  शाह ने फिल्मों के चयन में पुन: सतर्कता बरतनी शुरू कर दी। वे कम मगर, अच्छी  फिल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगें।  वे समझने लगें  कि अब,वह दौर आ गया है जब कला-फिल्मों और व्यावसायिक फिल्मों के बीच की दूरियां खत्म हो रही है। इसी दौर में उन्हें हे राम में महात्मा गांधी की भूमिका निभाने का मौका मिला।
उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी की भूमिका निभाना उनके लिए एक सपने के पूरे होने की तरह था। हिन्दी फिल्मों में अभिनय के साथ-साथ नसीरूद्दीन  शाह रंगमंच  में भी सक्रिय रहें। साथ ही, उन्होंने छोटे पर्दे के दो कालजयी  धारावाहिकों भारत एक खोज और मिर्जा गालिब में भी अपने शानदार अभिनय का रंग  भरा। जब,उन्होंने हिन्दी फिल्मों में अभिनय के वर्षो के अनुभव को रचनात्मक मोड़ देने का निर्णय लिया तब,फिल्म-निर्देशन की बागडोर संभालने की योजना उन्होंने बनायी। यूं होता तो क्या होता? के प्रदर्शन के साथ ही नसीरूद्दीन शाह अभिनेता के साथ-साथ निर्देशक भी बन गएं। हालाकि,निर्देशन के क्षेत्र में उनके पहले प्रयास को दर्शकों के व्यापक वर्ग की प्रशंसा नहीं मिली,पर समीक्षकों की कसौटी पर यह फिल्म पूरी तरह खरी उतरी। नसीरूद्दीन  शाह की अभिनय-प्रतिभा भारत तक ही सीमित नहीं रही। अंतरराष्ट्रीय फिल्म परिदृश्य में भी नसीरूद्दीन सक्रिय रहे हैं। हॉलीवुड फिल्म द लीग ऑफ एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमैन और पाकिस्तानी फिल्म खुदा के लिए ऐसी अंतरराष्ट्रीय फिल्में हैं जिसमें नसीरूद्दीन  शाह ने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करायी।
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित हो चुके नसीरूद्दीन  शाह आज भी अपने अभिनय से दर्शकों को दांतों तले ऊंगलियां दबाने के मौके देते हैं। ए वेडनेसडे  में एक आम आदमी के दर्द और उसके आक्रोश को जीवंत बनाने वाले नसीरूद्दीन  शाह के अभिनय का जादू ही था कि क्या बूढ़े? क्या युवा? सभी ने बिना इस स्टार-रहित फिल्म को देखने के लिए बार-बार सिनेमाघरों का रूख  किया। उम्मीद है,आने वाले कई वर्षो तक अभिनय-जगत में नसीरूद्दीन  शाह की सक्रियता बरकरार रहेगी और वे यूं ही हिन्दी फिल्मों में अपनी प्रभावी उपस्थिति से दर्शकों को कृतज्ञ करते रहेंगे।

पुरस्कार

  • नसीरूद्दीन शाह को 1987 में पद्म श्री और 2003 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है।
  • 1979 में फ़िल्म स्पर्श और 1984 में फ़िल्म पार के लिए उन्हें सर्वोत्कृष्ट अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
  • 1981 में आक्रोश, 1982 में चक्र, 1984 में मासूम, 1985 में पार तथा  अ वेनस्डे के लिए उन्हें फ़िल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के अवार्ड से सम्मानित किया गया।
  • फ़िल्म इक़बाल के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता के राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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